January 23, 2025

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छत्तीसगढ़ी साहित्यकार दुर्गा प्रसाद पारकर का उपन्यास विश्वविद्यालयों में शामिल, रचनात्मक योगदान पर पीएचडी शोध

छत्तीसगढ़ी साहित्यकार दुर्गा प्रसाद पारकर का उपन्यास विश्वविद्यालयों में शामिल, रचनात्मक योगदान पर पीएचडी शोध

शहीद महेंद्र कर्मा विश्वविद्यालय और हेमचंद यादव विश्वविद्यालय ने छत्तीसगढ़ी साहित्यकार दुर्गा प्रसाद पारकर के उपन्यास “बहू हाथ के पानी” को पाठ्यक्रम में शामिल किया

       दुर्ग। छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध आंचलिक साहित्यकार दुर्गा प्रसाद पारकर की साहित्यिक कृतियों को अब शहीद महेंद्र कर्मा विश्वविद्यालय, बस्तर के साथ ही शासकीय हेमचंद यादव विश्वविद्यालय, दुर्ग में भी पढ़ाया जाएगा। उनके छत्तीसगढ़ी उपन्यास ‘बहू हाथ के पानी’ को इन विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल किया गया है। पारकर ने जानकारी दी कि उन्हें शहीद महेंद्र कर्मा विश्वविद्यालय, बस्तर द्वारा सूचित किया गया है कि एम.ए. हिंदी के द्वितीय सेमेस्टर के पाठ्यक्रम ‘जनपदीय भाषा और छत्तीसगढ़ी साहित्य’ में उनके इस उपन्यास को पढ़ाने का निर्णय लिया गया है। इसी तरह, हेमचंद यादव विश्वविद्यालय, दुर्ग में भी आठवें सेमेस्टर के पाठ्यक्रम में इसे स्थान दिया गया है।

       इसके अलावा, श्री पारकर के साहित्यिक योगदान पर भी महत्वपूर्ण शोध कार्य हुए हैं। हाल ही में कलिंगा विश्वविद्यालय के कला एवं मानविकी विभाग में गणेश राम कौशिक ने “छत्तीसगढ़ी लोक साहित्य के संदर्भ में दुर्गा प्रसाद पारकर का रचनात्मक अवदान” विषय पर पीएचडी पूरी की। यह शोध कार्य डॉ. अजय शुक्ला के निर्देशन में संपन्न हुआ और कौशिक ने अपना शोध ग्रंथ पारकर को भेंट किया।

       श्री पारकर का साहित्यिक योगदान छत्तीसगढ़ी भाषा और साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण रहा है। पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर के एम.ए. छत्तीसगढ़ी पाठ्यक्रम में हरिशंकर परसाई के व्यंग्य ‘सुदामा के चाउर’ का छत्तीसगढ़ी अनुवाद शामिल किया गया है, जिसे पारकर ने किया है। उनकी अन्य प्रसिद्ध कृतियों में मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास ‘प्रतिज्ञा’ का छत्तीसगढ़ी अनुवाद शामिल है। इसके अलावा, उनका बाल कविता संग्रह ‘गोरसी’ और कहानी संग्रह ‘चकबंदी’ भी विशेष रूप से चर्चित हैं।

       श्री पारकर के साहित्यिक योगदान पर हेमचंद यादव विश्वविद्यालय, दुर्ग और अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय, बिलासपुर से भी पीएचडी शोध कार्य जारी हैं। उनकी रचनाएँ छत्तीसगढ़ी साहित्य को समृद्ध बनाने में विशेष स्थान रखती हैं और राज्य के साहित्यिक परिदृश्य में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है।